फिर एहतियात से और खूब धीमे धीमे एक एक पायदान का जैसे स्वाद लेते, नीचे उतरी और हर पल सोचती रही, उस पल को बीते अब तीन पल हुये, अब चार, अब पाँच फिर एक दिन एक महीना एक साल, पर फिलहाल अभी अभी बस अभी तो ये हुआ है, ताज़ा है, अभी और इस ताज़े हुये की खुशी उसके भीतर एक पल को ऐसी तीव्रता से लहराई कि अपना होना अचानक होना लगा, पूरी सार्थकता में.