न अत्यल्प और न अतिदीर्घ अष्टाधिक सर्ग होते हैं जिनमें से प्रत्येक की रचना एक ही [5] में की जाती है और सर्ग के अंत में छंद परिवर्तन होता है।
12.
* प्लुत वर्णों का उच्चार अतिदीर्घ होता है, और उनकी मात्रा 3 होती है जैसे कि, “ नाऽस्ति ” इस शब्द में ‘ नाऽस् ' की 3 मात्रा होगी ।
13.
सुदूर आकाशगंगा में कर्क राशि के अन्तर्गत पुनर्वसु एवं पुष्य नक्षत्र के मध्य अपनें सूर्य से अतिदीर्घ (अपनें एक लाख सूर्य उसमें समा जाएँ) एक ‘ लुब्धक बन्धु ' नाम का तारा पुंज है जिसके प्रमुख तारे को वेद में ‘ ब्रह्मणस्पति ' कहा गया है।