यह एक विचित्र स्थिति है कि अपने जीवन के सारे अभावों के बावजूद हम अति उत्पादन के ऐसे दौर में हैं जहाँ कोई भी वस्तु जिस क्षण उत्पादित होती है उसी क्षण उसका कचरे में तब्दील होना भी तय हो चुका होता है.
12.
मार्क्स ने यह नहीं कहा था कि पूँजीवाद उत्पादक शक्तियों का विकास करने में अक्षम हो गया है इसलिए खत्म हो जाएगा बल्कि उनके अनुसार अति उत्पादन से पैदा पूँजीवाद का आवर्ती संकट अर्थतंत्र को नहीं चला पाएगा और असमाधेय सामाजिक संकटों को जन्म देगा ।
13.
सचमुच यही उस ज्वलंत तथ्य की व्याख्या है कि हमारे देश में इसके बावजूद कि समाजवादी उत्पादन का अनवरत तेज विकास अति उत्पादन का संकट पैदा नहीं करता, वहीं पूँजीवादी देशों में जहाँ इसी मूल्य नियम का प्रभाव-क्षेत्र व्यापक है, उत्पादन के धीमा विकास के बावजूद समय-समय पर अति उत्पादन का संकट पैदा करता है।
14.
सचमुच यही उस ज्वलंत तथ्य की व्याख्या है कि हमारे देश में इसके बावजूद कि समाजवादी उत्पादन का अनवरत तेज विकास अति उत्पादन का संकट पैदा नहीं करता, वहीं पूँजीवादी देशों में जहाँ इसी मूल्य नियम का प्रभाव-क्षेत्र व्यापक है, उत्पादन के धीमा विकास के बावजूद समय-समय पर अति उत्पादन का संकट पैदा करता है।
15.
विकल्प हीन दुनिया:-पूंजी प्रधान इस युग में युवा पैसे के लिये कुछ भी करने को तैयार है, किसी भी तरह का रोजगार जहा ¡ उसे पैसा मिल सकें, उसकी एक बड़ी उपलब्धियाँ के तौर पर यह है चाहे वह डोर-टु-डोर जा कर कंपनियों में हुए अति उत्पादन की खपत करे या काल सेंटरों में वक्त बेवक्त अपनी श्रम देकर तनाव भरी जिंदगी जिये।
16.
यह देखा जा सकता है कि शेयर बाजार उछल रहा है, रिलायन्स ने ग्लोबल बना दिया है भारत को, अति उत्पादन इतना हो गया है कि खपत के रोज नये तरीके ढूडे जा रहे हैं पर क्या १ ९ ४ ७ में हो रही किसान हत्या आज के मुकाबिले......, या फिर आम आदमी का जीवन.... लोक्संस्क्रिति.... साथ में एक बडे समुदाय का जीवन जो जंगलो में रहता था उसको इस लोकतंत्र ने क्या दिया है.......