और यह मध्यवर्गीय उच्छृंखलता, आर्थिक आधारों में धोबी के खूँटे से बँधी, उस आजाद कुत्ते को आदर्श बना रही है, जिसे धोबी की लड़की गोदी में उठा कर चुमकारती है, और उन हसरत-भरी आँखों से उसे देखती है, जिस आदर्श को झकझोरती अदम्यता से नये फराऊन ने पुराने फराऊन के बनाये पिरैमिड को भी नहीं देखा होगा।