मुख्य रूप से भारत के ईरान द्वारा अधिकृत प्रदेश में इसका प्रचार, प्राचीन फारसी शब्द दिपि (लिखना) एवं इससे उद्भूत दिपपति शब्दों का अशोक के अभिलेखों में प्रयोग, दीर्घस्वरों का अभाव, ईरानी आहत सिक्कों पर ब्राह्मी अक्षरों के साथ खरोष्ठी अक्षरों की विद्यमानता तथा कुछ खरोष्ठी वर्णों का अरमई के वर्णों से साम्य एवं अनेकों के अरमई वर्णों से उद्भव की प्रतिपाद्यता इस मत के पोषक तत्व हैं।
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मुख्य रूप से भारत के ईरान द्वारा अधिकृत प्रदेश में इसका प्रचार, प्राचीन फारसी शब्द दिपि (लिखना) एवं इससे उद्भूत दिपपति शब्दों का अशोक के अभिलेखों में प्रयोग, दीर्घस्वरों का अभाव, ईरानी आहत सिक्कों पर ब्राह्मी अक्षरों के साथ खरोष्ठी अक्षरों की विद्यमानता तथा कुछ खरोष्ठी वर्णों का अरमई के वर्णों से साम्य एवं अनेकों के अरमई वर्णों से उद्भव की प्रतिपाद्यता इस मत के पोषक तत्व हैं।