भाई रशीद जी के पहले कमेन्ट और आपके निशा जी पर लिखे ब्लॉग से पूरी सहमती है किन्तु क्या कमेन्ट ही मानदंड होने चाहिए? विशेषकर अधिमूल्यित श्रेणी के लिए? कई बार कुछ ऐसे ब्लॉग पढ़ने में आये हैं जो मंच पर उपलब्ध ब्लोगरों के साथ साथ 'जाज ' की ओर से भी अनदेखे किये गए!
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सोचने की बात है, दो मास पूर्व जिन आलेखों, रचनाओं को अधिमूल्यित किया गया था, अथवा ‘ ब्लॉगर ऑफ़ द वीक ' का सम्मान दिया गया था, क्या आज वह किसी को याद भी होगा! महत्त्व इस बात का नहीं है, कि कितनी टिप्पणियाँ मिली, वरन इस बात का होता है, कि रचना योग्य हो.
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आज कल आधुनिक होने का मतलब अपनी शालीनता चाहे वह वस्त्रगत हो या वैचारिक का त्याग ही समझा जाता है, आधुनिकता के नाम पर दूसरो से अलग दिखने की चाह ही हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति से दूर ले जा रही है और उस अधिमूल्यित भेड़ चाल का हिस्सा बनने में भी आधुनिक बालाओ को गुरेज नहीं है जो उन्हे आदिमानव की श्रेणी में खड़ा करती हो