आज़ादी के बाद भारतीय पूँजीपति वर्ग ने भारत में जो क्रमिक पूँजीवादी विकास का रास्ता अख्तियार किया, उसके कारण कम गति से ही सही, लेकिन जाति द्वारा आधारित अनमनीय श्रम विभाजन और खान-पान सम्बन्धी वर्जनाएँ टूटी हैं।
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आज जाति व्यवस्था के तीन मूल तत्वों यानी कि खान-पान सम्बन्धी रोक, जन्म-आधारित अनमनीय श्रम विभाजन और विवाह के रिश्ते पर प्रतिबन्ध, में से पहले दो लगभग समाप्त हो चुके हैं, और तीसरा भी कम-से-कम शहरी पढ़े-लिखे युवाओं में टूट रहा है।
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हमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की हिन्दू अन्धराष्ट्रवादी विचारधारा (जिसकी अन्तर्वस्तु वास्तव में आधुनिक फ़ासीवादी विचारधारा है) से लेकर हिन्दू महासभा की विचारधारा (जो अपने पुरातन, कठोर, अनमनीय, बर्बर हिन्दूवाद पर पहले की तरह अडिग है) तक की बात कर सकते हैं ; और हम इसके तमाम असंगठित उदार स्वरूपों की बात भी कर सकते हैं, जिसमें अण्णा हज़ारे भी शामिल हैं।
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वे भला माननीयसिनहा जैसे सख्त, अनमनीय जज के घर अवकाश प्राप्ति के बाद सपत्नीक जातेऔर वे भी निर्णय को अपने पक्ष में करवाने के लिए! परन्तु जब चौधरी चरणसिंहजी ने माननीय सिनहा से इस विषय पर पत्र लिखकर पूछा तो श्री सिनहा ने श्रीनायर के कथन की पुष्टि की और कहा कि श्री धात्री-शरण माथुर सपत्नीक उनसेमिलने आए थे और तब उनसे बातों ही बातों में कहा था याचिका श्रीमती गांधीके पक्ष में निर्णीत करने से जज को बड़ा लाभ होगा.