चित्त की समस्त वृत्तियों को अनुशासित किये बगैर दुनिया का छोटे से छोटा काम भी सही ढंग से नहीं किया जा सकता है, यहाँ तक कि खाना खाने की क्रिया भी अगर एकाग्र होकर नहीं की जाये तो अनवधानता से श्वासनली में अन्नकण चले जाने से आदमी को यम तक के दर्शन हो जाते हैं।
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अपनी कुशलता से, स्निग्धा व्यवहार से, मधुर वाणी से आप वहाँ के प्रमुख पुरुषों के मन के सब संदेह दूर कर, आज तक भारतीय अधिकारियों के रुक्ष, आत्मीयताशून्य व्यवहार से उत्पन्न कटुता को हटाकर, आवश्यकता हो तो ऐसे व्यवहार जिनके द्वारा जानबूझकर या अनवधानता से हुए हों उनके स्थान पर अधिक उदात्त, स्नेहभावसंपन्न व्यक्तियों को नियुक्त करने का विचार कर, नेपाल का भारत से अटूट स्नेह, परस्परपूरकता के संबंध प्रस्थापित कर अपनी यात्रा के उद्देश्य में सफल होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है।