अंत में बार-बार ज्ञापन और अनुरोध-पत्र देने के बावजूद प्रशासन द्वारा इस मामले पर कोई रुचि न दिखाने से सबक लेते हुए विश्वविद्यालय के दलित छात्र-छात्राओं ने दीक्षांत समारोह का पूरी तरह बहिष्कार करने का निर्णय लिया हंै।
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इस भ्रम की वजह से पाठकों के पत्रों में कई अनुरोध-पत्र मुझे इस आशय के भी मिले कि वे यह पुस्तक मंगवाना चाहते हैं और मैं इसकी व्यवस्था कर दूं. ऐसे सभी पत्र-लेखकों को पत्र लिख कर मुझे स्थिति का खुलासा करना पड़ा.