मेरी नज़र से देखो-गताँक से आगे-कहानी अनु- और वो अचानक अनुजी से अनु पर आ गया था-मैं फिर असहज हो गयी-मैं तुम्हरे दुख को समझ सकता हूँ-तुम्हारी भावनाओं की कद्र करता हूँ-महसूस कर सकता हूंम-मैं जानता हूँ कि मुझे देख कर तुम्ह
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नेताओं को अब हेलमेट की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उन्हें किसी बात से डर नहीं है यह देश अब आम जनता के रहने लायक नहीं रहा अब यहाँ केवल नेताओं के अनु- कुल, आबोहवा चल रही है हरेश कुमार जी की टिप्पणी से पूरी तरह सहमत हूँ।
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“ अनुश्रवण ” शब्द का निर्माण अनु- उपसर्ग, श्रु धातु और ल्युट् प्रत्यय के योग से हुआ है जिसका मतलब वेदों की ऋचाओं को गुरु द्वारा उच्चरित करने के बाद उसी रूप से उच्चरित करके याद करना है ताकि शुद्ध रूप में उनका उच्चारण करना सीखा जा सके तथा अनुश्रवण की क्रिया द्वारा उसकी परंपरा आगे बढ़ाई जा सके।