| 11. | उस पारमार्थिक सत्ता से विश्वात्मा (वैश्वानर) का उद्भव होता है और यह अनेकत्व का आश्रय है।
|
| 12. | उस पारमार्थिक सत्ता से विश्वात्मा (वैश्वानर) का उद्भव होता है और यह अनेकत्व का आश्रय है।
|
| 13. | ज्ञान के अयोगपथ से यह सिद्ध होता है कि प्रति शरीर भिन्न-भिन्न है, अत: उसमें अनेकत्व है।
|
| 14. | एकत्व होते हुए भी अनेकत्व दिखे, यह उस कलाकार की सुंदर व्यवस्था है ताकि सब एक-दूसरे के काम आयें।
|
| 15. | इसके ऊपर उठने पर संश्लेषणात्मक प्रज्ञा का स्तर आता है जो अनेकत्व में आधारभूत एकत्व को जान लेती है।
|
| 16. | एकत्व होते हुए भी अनेकत्व दिखे, यह उस कलाकार की सुंदर व्यवस्था है ताकि सब एक-दूसरे के काम आयें।
|
| 17. | कठोपनिषद् में कहा है कि ” जो इस संसार में विभिन्नता अथवा अनेकत्व देखता है, वह मृत्यु से मृत्यु को जाता है।
|
| 18. | द्वैत अनेकत्व को जन्म देता है, किन्तु प्रेम इस द्वैत (व्यक्ति) और अनेकत्व (समष्टि) से होता हुआ अद्वैत की ओर ही जाता है।
|
| 19. | द्वैत अनेकत्व को जन्म देता है, किन्तु प्रेम इस द्वैत (व्यक्ति) और अनेकत्व (समष्टि) से होता हुआ अद्वैत की ओर ही जाता है।
|
| 20. | द्वैत अनेकत्व को जन्म देता है, किन्तु प्रेम इस द्वैत (व्यक्ति) और अनेकत्व (समष्टि) से होता हुआ अद्वैत की ओर ही जाता है।
|