अगस्टीन ने अपने जीवन के कई वर्ष अय्याशी, अन्धविश्वास एवं अपधर्म में बिताये थे किन्तु उनकी माता सन्त मोनिका की अथक प्रार्थनाओं द्वारा उनका मनपरिवर्तन हुआ तथा उन्होंने ख्रीस्तीय धर्म का आलिंगन किया।
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सन्त अगस्टीन ने अपधर्म पर विजय पाई, अकिंचनता एवं दीनता का वरण किया, निर्धनों की मदद की, समारोहों एवं सभाओं में प्रवचन करते रहे तथा मृत्युपर्यन्त भक्तिपूर्वक प्रार्थना एवं मनन चिन्तन में लगे रहे।
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शुरू में जहां निर्देश बपतिस्मा के बाद दिये जाते थे, वहीं विशेष रूप से चौथी सदी के अपधर्म की शुरुआत में, विश्वासकर्ताओं को बपतिस्मा किये जाने से पूर्व बढ़ती हुई विशिष्टता से युक्त निर्देश दिये जाने लगे.
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शुरू में जहां निर्देश बपतिस्मा के बाद दिये जाते थे, वहीं विशेष रूप से चौथी सदी के अपधर्म की शुरुआत में, विश्वासकर्ताओं को बपतिस्मा किये जाने से पूर्व बढ़ती हुई विशिष्टता से युक्त निर्देश दिये जाने लगे.
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मार्गरीट डे नैवर अपने आप में एक लेखिका भी थी और उसके कार्यों में ईसाई रहस्यवाद और सुधार तत्व शामिल हैं लेकिन फ़्रांस के राजा की प्यारी बहन के रूप में सुरक्षा के कारण वह अपधर्म के कगार पर थे.
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मार्गरीट डे नैवर अपने आप में एक लेखिका भी थी और उसके कार्यों में ईसाई रहस्यवाद और सुधार तत्व शामिल हैं लेकिन फ़्रांस के राजा की प्यारी बहन के रूप में सुरक्षा के कारण वह अपधर्म के कगार पर थे.
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लेकिन, एक जिज्ञासु मौके से, जिसने गंभीर परिणाम छोड़े, ये परिवर्तित जंगली-ऑस्ट्रोगोथ, विजिगोथ, बरगुंडियन, नेंडल और बाद में लोम्बार्ड-एरियनवाद में परिवर्तित हो गए थे, जो कि नाइसिया की सभा के बाद से एक अपधर्म बन गया था.
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ये हिस्से भारत का कैंसर साबित होंगे और होने भी लगे हैं … ये तो तय सी बात है की भारतीय समाज में और खासकर बम्बई जैसे तेजी से अंधे होकर भागते शहरो में, लडकियों के अभिभावक अब अपना दायित्व पूरा भूल ही चुके हैं, बम्बई की विधर्मी अहिंदू जनसँख्या में खिचड़ी संस्कार और अपधर्म खून में शामिल हो गया है.
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सुयोधन-हेतु ही पछता रहा हूं, बिना विजयी बनाये जा रहा हूं. ” ” वृथा है पूछना किसने किया क्या, जगत् के धर्म को सम्बल दिया क्या! सुयोधन था खडा कल तक जहां पर, न हैं क्या आज पाण्डव ही वहां पर? ” ” उन्होंने कौन-सा अपधर्म छोडा? किये से कौन कुत्सित कर्म छोडा? गिनाऊं क्या? स्वयं सब जानते हैं, जगद्गुरु आपको हम मानते है. ” ” शिखण्डी को बनाकर ढाल अर्जुन, हुआ गांगेय का जो काल अर्जुन, नहीं वह और कुछ, सत्कर्म ही था.