भाई गिरीश मिश्रा जी, आपके अनुसार भले ही यह वितण्डावाद हो, लेकिन कम आप तो कोई “ तर्क ” या “ विश्लेषण ” रख सकते थे? सिर्फ़ नसीहत देने में ही जुट गये सर जी … और क्या यहाँ कोई बहस (Debate) करने आता है? यहाँ तो हर कोई अपना-अपना विचार रखता है और चलता बनता है …
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वैसे अपना-अपना विचार है लेकिन मेरा मानना है की राष्टगान गाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है उसकी भावना की रक्षा की दिशा में सोचना तथा उसके लिए एकत्र होना और वर्धा में हमसब देश और समाज के लिए ब्लोगिंग के सार्थक प्रयोग पर कुछ सार्थक सोचने के लिए पहुंचे थे तो यह भी राष्ट्रगान की भावना के अनुकूल था वैसे राष्ट्रगान गाया जाता तो सोने पे सुहागा और हो जाता...