जब अपरा- परा आपस में मिलते हैं और वहाँ ऐसी ऊर्जा बनती है जो आत्मा-परमात्मा को अपनें में कैद कर सके, तब जीव का होना संभव होता है ।
12.
सात्विक गुन परमात्मा कि ओर, राजस गुन भोग की ओर तथा तामस गुन मोह-भय से जोड़ता है और ईन सब के साथ अपरा- प्रकृति का तत्त्व अंहकार भी साथ-साथ रहता है ।
13.
शैव-वैष्णवों में सदभाव का उदय हुआ एकता का पाठ पूरे विश्व को पढ़ाया है राम घट-घट में हैं तुलसी ने समझाया अपरा- परा को संग-संग उसने गाया है ।
14.
वह जिसका कोई आदि-अंत नहीं है, वह जो सनातन है, वह जिसकी स्थिति अच्छी तरह से नहीं है, वह जो तीन गुणों से परिपूर्ण है, वह जिसमें अपरा- परा, दो प्रकृतियाँ हैं, वह जो अपनें में निर्विकार एवं सविकार तत्वों को धारण किये हुए है, जिसको वह जानता है-जो बैरागी है, उसका नाम है-संसार ।