तीन पुरस्कृत कवि-पूनम तुशामड़, अनुज लुगुन और अर्चना भैंसारे-और कई अपुरस्कृत कवि जैसे उज्ज्वला ज्योति तिग्गा, शुभम श्री, फरीद खान फरीद, उस्मान और मृत्युंजय को मिला कर हिन्दी कविता की वह नयी पौध बनती है, जिसके लिए कविता साहित्यिक हस्तक्षेप से ज़्यादा सामाजिक हस्तक्षेप है.