यदि आप पिछले भाग में लेखिका प्रत्यक्षा द्वारा लाई अप्रत्याशितता से हैरान थे तो कहानी का ये चौथा और अंतिम भाग शायद आपको बाल नोंचने पर मजबूर कर दे।
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यदि आप पिछले भाग में लेखिका प्रत्यक्षा द्वारा लाई अप्रत्याशितता से हैरान थे तो कहानी का ये चौथा और अंतिम भाग शायद आपको बाल नोंचने पर मजबूर कर दे।
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मेरी कमाई से ख़रीदी चीज़ों का शौक करने की ज़रूरत नहीं! समझीं! ” भड़ाक से दरवाज़ा उसी अप्रत्याशितता से बन्द हो गया, जैसे खुला था मारी कुछ देर स्तब्ध बैठी रही।