(नागार्जुन, प्रतिनिधि कविताएं, सम्पादक-नामवर सिंह, द्वितीय संस्करण, पृष्ठ 98) ऐसे कवियों के लिए जनता एक अमूर्त वस्तु नहीं है:जिसकी अमूर्तता की चिन्ता स्व.विजयदेव नारायणदेव साही को हमेशा रही।
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मैं ईश्वर के इस खेल को समझ नहीं पाती हूँ, मेरे लिए जो एक अमूर्त वस्तु है, उनके लिए वही मूर्त कैसे हो जाती है, ज़रूर ये सरकारी योजनाओं के सदृश्य हैं, जिनमें पैसा तो बहु
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मैं ईश्वर के इस खेल को समझ नहीं पाती हूँ, मेरे लिए जो एक अमूर्त वस्तु है, उनके लिए वही मूर्त कैसे हो जाती है, ज़रूर ये सरकारी योजनाओं के सदृश्य हैं, जिनमें पैसा तो बहु...
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गिनती करने योग्य किस मूर्त / अमूर्त वस्तु की बात की जा रही उसका उल्लेख शतक शब्द के साथ किया जाना चाहिए, जैसे क्रिकेट के ‘रनों का शतक ' और ऐतिहासिक महत्त्व के सौ वर्षों के अंतराल के लिए ‘वर्षों का शतक ' ।
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गिनती करने योग्य किस मूर्त / अमूर्त वस्तु की बात की जा रही उसका उल्लेख शतक शब्द के साथ किया जाना चाहिए, जैसे क्रिकेट के ‘ रनों का शतक ' और ऐतिहासिक महत्त्व के सौ वर्षों के अंतराल के लिए ‘ वर्षों का शतक ' ।
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मैं ईश्वर के इस खेल को समझ नहीं पाती हूँ, मेरे लिए जो एक अमूर्त वस्तु है, उनके लिए वही मूर्त कैसे हो जाती है, ज़रूर ये सरकारी योजनाओं के सदृश्य हैं, जिनमें पैसा तो बहुत खर्च बहुत होता है, लेकिन किसी को दिखता नहीं.
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मैं ईश्वर के इस खेल को समझ नहीं पाती हूँ, मेरे लिए जो एक अमूर्त वस्तु है, उनके लिए वही मूर्त कैसे हो जाती है, ज़रूर ये सरकारी योजनाओं के सदृश्य हैं, जिनमें पैसा तो बहुत खर्च बहुत होता है, लेकिन किसी को दिखता नहीं.
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यूँ तो कवि के सिरे पर कविता का जो भाव या अर्थ होता है, वह पाठक के सिरे पर आते-आते अपना रंग-रूप, विन्यास बदल लेता है और फ़िर भी एक अमूर्त वस्तु ही हुआ करता है, किन्तु वह पाठक में कोई प्रतिक्रिया भी जगा सकता है, और वह प्रतिक्रिया पुनः एक कविता का रंग-रूप ले सकती है.
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यूँ तो कवि के सिरे पर कविता का जो भाव या अर्थ होता है, वह पाठक के सिरे पर आते-आते अपना रंग-रूप, विन्यास बदल लेता है और फ़िर भी एक अमूर्त वस्तु ही हुआ करता है, किन्तु वह पाठक में कोई प्रतिक्रिया भी जगा सकता है, और वह प्रतिक्रिया पुनः एक कविता का रंग-रूप ले सकती है.