हरित प्रौद्योगिकी को इसी दोहन प्रणाली के सुधार के प्रयास के रूप में अस्वीकृत किया गया है, जिसको सिर्फ सतही रूप से पर्यावरण मैत्रिक रूप दिया जा रहा है, और इसके बावजूद अरक्षणीय रूप से मानवीय तथा प्राकृतिक दोहन जारी है.
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हरित प्रौद्योगिकी को इसी दोहन प्रणाली के सुधार के प्रयास के रूप में अस्वीकृत किया गया है, जिसको सिर्फ सतही रूप से पर्यावरण मैत्रिक रूप दिया जा रहा है, और इसके बावजूद अरक्षणीय रूप से मानवीय तथा प्राकृतिक दोहन जारी है.
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माइकल माइकल स्कॉट पेपर कम्पनी शुरु करता है और पाम व रयान को विक्रयकर्ताओं के रूप में जुड़ने का लालच देता है तथा हालांकि उसका व्यापारिक प्रतिमान अंततः अरक्षणीय है, लेकिन तुरंत ही डण्डर मिफ्लिन का मुनाफा खतरे में पड़ जाता है.
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माइकल माइकल स्कॉट पेपर कम्पनी शुरु करता है और पाम व रयान को विक्रयकर्ताओं के रूप में जुड़ने का लालच देता है तथा हालांकि उसका व्यापारिक प्रतिमान अंततः अरक्षणीय है, लेकिन तुरंत ही डण्डर मिफ्लिन का मुनाफा खतरे में पड़ जाता है.
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माइकल माइकल स्कॉट पेपर कम्पनी शुरु करता है और पाम व रयान को विक्रयकर्ताओं के रूप में जुड़ने का लालच देता है तथा हालांकि उसका व्यापारिक प्रतिमान अंततः अरक्षणीय है, लेकिन तुरंत ही डण्डर मिफ्लिन का मुनाफा खतरे में पड़ जाता है.
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आजाद भारत में एक तो शिक्षा संस्थानों के जरिए ही आलोचनात्मक प्रभुत्व पाने की रणनीति ने इसे सभी तरह के दक्षिणपंथी प्रभावों के समक्ष अरक्षणीय स्थिति में पहुँचा दिया और इसीलिए सोवियत संघ के बिखरते ही लाभान्वितों ने दूसरे चरागाहों की ओर मुँह फेरा ।
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सोरोस के विचार में, बाजार का मूड-बाजार के मूड में प्रबल पूर्वाग्रह, आशावाद/निराशावाद होता है, इससे बाजार वास्तविकता को देखता है-“दरअसल, अपने-आपको बहुत ही सुदृढ़ बना सकता है, इसीलिए शुरूआत में ये आत्म-दृढ़ता होती है, लेकिन अंतत: अरक्षणीय और आत्मघाती गूंज/धमाके या बुलबुले का सिलसिला बन जाता है.”
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सोरोस के विचार में, बाजार का मूड-बाजार के मूड में प्रबल पूर्वाग्रह, आशावाद/निराशावाद होता है, इससे बाजार वास्तविकता को देखता है-“दरअसल, अपने-आपको बहुत ही सुदृढ़ बना सकता है, इसीलिए शुरूआत में ये आत्म-दृढ़ता होती है, लेकिन अंतत: अरक्षणीय और आत्मघाती गूंज/धमाके या बुलबुले का सिलसिला बन जाता है.”[55]
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इस प्रश्न का एक ही संतोषजनक उत्तर हो सकता है कि पाकिस्तानजो स्वयं एक अरक्षणीय ' द्विराष्ट्र ' के सिध्दांत की उपज है, जो स्वयं एक मजहबी देश है, और जहाँ लोकतंत्र की जड़ें बहुत कमजोर हैंएक पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, आत्मविश्वस्त और निरंतर उन्नति कर रहे भारत, अंतरराष्ट्रीय समुदाय में जिसकी प्रतिष्ठा लगातार बढ़ती ही जा रही है, से समझौता नहीं कर पा रहा है।