यह इल्म न इंसानों की तरह कसबी और तहसीली होता है और ख़ुदा की ज़ाती बल्कि अरज़ी इल्म है जो ख़ुदा वंदे आलम की तरफ़ से उन को अता होता है।
12.
दूसरी अरज़ी आपके दरबार में दखिल करके आये, सुनवाई करो सरकार, न्याय करो सरकार! हुज़ूर आपकी मूर्ति ले आये थे, रख के पूजा भी करते थे ।
13.
अगर यह अपनी नौकरी छोड़ मेरे साथ कलकत्ता चले तो मै अभी तलाक की अरज़ी वापिस ले लूं और बच्चे को भी अपना लूं पर इसकी ज़िद है कि साथ रहना है तो इसके शहर में बदली करवानी पड़ेगी।
14.
तो हड़क-हड़क के भी उनके गीत गाने को मज़बूर यह आम आदमी, निरुपाय हो एक हिमाकत कर बैठा (अरज़ी लेना या न लेना उनकी मर्ज़ी होती है, लिहाज़ा) एक टेलीग्राम भेज़ दिया,“प्लीज़ इन्फ़ार्म डिटेल्स आफ़ आउटस्टैंडिंग एमाउन्ट्स, बीईंग मेन्शन्ड इन बिल्स”।
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तो हड़क-हड़क के भी उनके गीत गाने को मज़बूर यह आम आदमी, निरुपाय हो एक हिमाकत कर बैठा (अरज़ी लेना या न लेना उनकी मर्ज़ी होती है, लिहाज़ा) एक टेलीग्राम भेज़ दिया,”प्लीज़ इन्फ़ार्म डिटेल्स आफ़ आउटस्टैंडिंग एमाउन्ट्स, बीईंग मेन्शन्ड इन बिल्स”।
16.
आप सरकारी कार्यालय में अरज़ी देते है, सबिंधत अधिकारी अर्ज़ी को पढ़ने के बजाय उसे कई बार आगे पीछे पलट कर देखता है, तो आपके लिए संकेत है कि अर्जी के साथ वह कुछ अपने मतलब की वस्तु देख रहा है ।
17.
अगले दो मामलों में लोक अदालत की उपयोगिता, उसके आयोजन पर होने वाला खर्च और हमारी कई घन्टों की मेहनत कुछ वसूल हुई जब दो जोड़ों को समझा बुझा कर हमने साथ रहने को मना लिया और उन्होंने तलाक की अरज़ी वापिस ले ली।
18.
प्रेमिका के शहर में ठिकाने की ख़ोज में भटकने की लानत से बच कर आप तो ख़ुश हैं … पर हम आपकी आज़ादी से बुरी तरह जलन के मारे आपको भी हमरी तरह उम्रक़ैद के लिए भगवान से सुबह सुबह अरज़ी लगा रहे हैं! अब अगली कड़ी का भी इंतज़ार है … और शादी का भी ।
19.
मअलूम हुआ कि इस इल्मे गै़ब में जो ख़ुदा वंदे आलम अपने लिये मख़सूस करता है और उस इल्म में जो अपने नबियों और वलियों को अता करता है, फ़र्क़ है और वह फ़र्क़ वही है जो ज़ाती और अरज़ी इल्म में है जो दूसरों के लिये ना मुम्किन है वह इल्में ज़ाती है लेकिन अरज़ी इल्म ख़ुदा वंदे आलम अपने ख़ास बंदों को अता करता है जिस के ज़रिये वह ग़ैब की ख़बरें देते हैं।
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मअलूम हुआ कि इस इल्मे गै़ब में जो ख़ुदा वंदे आलम अपने लिये मख़सूस करता है और उस इल्म में जो अपने नबियों और वलियों को अता करता है, फ़र्क़ है और वह फ़र्क़ वही है जो ज़ाती और अरज़ी इल्म में है जो दूसरों के लिये ना मुम्किन है वह इल्में ज़ाती है लेकिन अरज़ी इल्म ख़ुदा वंदे आलम अपने ख़ास बंदों को अता करता है जिस के ज़रिये वह ग़ैब की ख़बरें देते हैं।