इस दिन जंगली श्यामाक धानआदि खाकर वैदिक-परिवार के लोग अपने अरण्यवासी पूर्वज ऋषियों को स्मरण करते हैंऔर जैन लोग सांवत्सरिक व्रत धारण करते हैं.
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इस विद्यालय में आज भी बिहार और झारखंड सहित अन्य क्षेत्रों के विद्यार्थी पढ़ने आ रहे हैं और अरण्यवासी प्राचीन गुरुकुलों का एहसास महसूस करते हैं।
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इस प्रकार गवय में गोसादृश्य का दर्शन उपमानक्रमण, अरण्यवासी के द्वारा उपदिष्ट अर्थ का स्मरण उसका व्यापार तथा गवय में गवय शब्द की शक्ति का निश्चय उपमिति नामक फल कहा जाता है।
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इस प्रकार गवय में गोसादृश्य का दर्शन उपमानक्रमण, अरण्यवासी के द्वारा उपदिष्ट अर्थ का स्मरण उसका व्यापार तथा गवय में गवय शब्द की शक्ति का निश्चय उपमिति नामक फल कहा जाता है।
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सूक्ष्म अध्यात्मवाद के कारण नगरीय अथवा ग्रामीण कोलाहल से दूर अरण्यों में ब्रह्मचारी और वानप्रस्थी ऋषि गुरुओं द्वारा अरण्यवासी योग्य शिष्यों को प्रदान किया गया विशिष्ट ज्ञान ही आरण्यक ग्रंथों के रूप में उपलब्ध है।
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पश्चात् किसी समय नागरिक ने पहली बार गवय को देखा, उसमें गाय के सादृश्य का प्रत्यक्ष करके पूर्वश्रुत अरण्यवासी के वाक्य का स्मरण किया और उसे गवय समझ लिया अर्थात् गवयत्व विशिष्ट पशु में गवय शब्द की वाच्यत्वरूप शक्त् का निश्चय किया।
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और मेरे मन में अत्यन्त अतीत काल के उस पाश्चत्य सम्राट् सिकन्दर का चित्र उदित होता है और मैं देख रहा हूँ-वह महाप्रतापी सम्राट सिन्धु नदी के तट पर खड़ा होकर अरण्यवासी, शि लाखंड पर बैठे हुए वृ द्ध, नग्न, हमारे ही एक सन्यासी के साथ बात कर रहा है।
18.
जब कोई अरण्यवासी मनुष्य किसी ग्रामवासी मनुष्य को बताता है कि अरण्य में तुम्हारी गौ के सदृश गवय नाम का एक पशु होता है, जब तुम अरण्य में कभी जाना तो जिस पशु को अपनी गौ के सदृश देखना उसे गवय समझ लेना, तदनुसार जब ग्रामवासी कभी अरण्य जाता है और वहाँ अपनी गौ के सदृश किसी पशु को देखता है उसे अरण्यवासी की बात का स्मरण होता है और उसे फलस्वरूप उस पशु में उसे गवय शब्द के शक्तिसंबंध का निश्चय हो जाता है।
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जब कोई अरण्यवासी मनुष्य किसी ग्रामवासी मनुष्य को बताता है कि अरण्य में तुम्हारी गौ के सदृश गवय नाम का एक पशु होता है, जब तुम अरण्य में कभी जाना तो जिस पशु को अपनी गौ के सदृश देखना उसे गवय समझ लेना, तदनुसार जब ग्रामवासी कभी अरण्य जाता है और वहाँ अपनी गौ के सदृश किसी पशु को देखता है उसे अरण्यवासी की बात का स्मरण होता है और उसे फलस्वरूप उस पशु में उसे गवय शब्द के शक्तिसंबंध का निश्चय हो जाता है।
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जब कोई अरण्यवासी मनुष्य किसी ग्रामवासी मनुष्य को बताता है कि अरण्य में तुम्हारी गौ के सदृश गवय नाम का एक पशु होता है, जब तुम अरण्य में कभी जाना तो जिस पशु को अपनी गौ के सदृश देखना उसे गवय समझ लेना, तदनुसार जब ग्रामवासी कभी अरण्य जाता है और वहाँ अपनी गौ के सदृश किसी पशु को देखता है उसे अरण्यवासी की बात का स्मरण होता है और उसे फलस्वरूप उस पशु में उसे गवय शब्द के शक्तिसंबंध का निश्चय हो जाता है।