सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और पक्षकार हाजी महमूद की ओर से दर्ज कराई गई आपत्ति में कहा गया कि फैसले के पहले समझौते की अर्जी देना निहित स्वार्थों से प्रेरित है।
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बोर्ड की ओर से यह भी कहा गया कि पिछले साठ सालों से मामले में समझौते की ओर कोशिश नहीं की गई थी फैसले के पहले इस प्रकार की अर्जी देना गलत है।
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हम यहाँ पर इस बात की वकालत नहीं कर रहे कि गायकों को हद से ज्यादा रूतबा हासिल होता है, बल्कि समाज की कचहरी में यह अर्जी देना चाहते हैं कि शायरों को बराबर न सही तो आधा हीं महत्व मिल जा ए..
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हम यहाँ पर इस बात की वकालत नहीं कर रहे कि गायकों को हद से ज्यादा रूतबा हासिल होता है, बल्कि समाज की कचहरी में यह अर्जी देना चाहते हैं कि शायरों को बराबर न सही तो आधा हीं महत्व मिल जाए..उनके लिए यह हीं काफी होगा।