प्रकृति-चित्र, रस माधुर्य, भाषा और अलंकार प्रयोग से शब्द, रस व भाव की चित्रमय झांकी ताहिरा की हृदयानुभूतियों को स्पंदित कर रही हो ।
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इस काल को रीति काल कहा गया क्योंकी इस काल के अधिकतर कवियों ने श्रींगार वर्णन, अलंकार प्रयोग, छंद-बद्धता, आदि के बंधे रास्ते की ही कविता की, हालाँकि घनानंद, बोधा, ठाकुर, गोविन्द ठाकुर जैसे रीति मुक्त कवियों ने अपनी रचना के विषय मुक्त रखे।