| 11. | माया ही विद्या एवं अविद्या रूप गतिशीलता है।
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| 12. | सारे अविद्या भावों को विद्या में बदल सके।
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| 13. | माया ही विद्या एवं अविद्या रूप गतिशीलता है।
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| 14. | इस प्रकार अविद्या जीव को बन्धन करती है।
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| 15. | जीव की यह अविद्या दूर हो सकती है।
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| 16. | अपेक्षा भाव अविद्या मार्ग है और अनन्त है।
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| 17. | इस प्रकार अविद्या जीव को बन्धन करती है।
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| 18. | मोहासक्ति [राग-द्वेष] के मूल में अविद्या ही प्रमुख है।
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| 19. | अविद्या सम्पूर्णतः मिटना ही शून्य होना है...
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| 20. | सारे अविद्या भावों को विद्या में बदल सके।
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