एक अविद्वान की दृष्टि से और साधारण समझ से मैंने पाया, कि..
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पुरुष विद्वान हो, चाहे अविद्वान, स्त्रियां उसे बुरे रास्ते पर डाल देती हैं।
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इसे गरीब, अमीर, विद्वान, अविद्वान सभी अपनी सामर्थ्य के अनुसार कर सकते हैं ।
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एकाध शास्त्र या थोड़ा-बहुत पढ़नेवाले को भी विद्वान नहीं कह सकते, उसकी गणना अविद्वान में ही है।
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आप अहंकारवश पोस्ट तक पढ़ना गवारा नहीं करते वर्ना आप बेनामी की टिप्पणियों का मख़ौल उड़ाकर खुद को अविद्वान सिद्ध न करते।
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बस, ऐसे ही विद्वान ; अविद्वान से यहाँ तात्पर्य है, कारण, ऐसों ही में परस्पर कम अन्तर हो सकता है।
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लेकिन, यदि वही सदाचारी तथा गायत्री प्रभृति नित्यनैमित्तिकादि कर्मों का करनेवाला हो तो अविद्वान होने पर भी विद्वान की तरह मान्य हो सकता है।
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5 करोड़ जपः पुत्र स्थान-विद्या स्थान शुद्धि, अपुत्रवान को पुत्र, पुत्रवान के पुत्र का अच्छे घर संबंध, अविद्वान को विद्या, बुद्धिशक्ति जाग्रत, धारणाशक्ति, ग्रहणशक्ति वृद्धि।
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प्रथम श् लोक (317 वें) में मनु ने अविद्वान ब्राह्मण को भी अच्छा कहा है और उसमें दृष्टांत दिया है प्रणीत तथा अप्रणीत अग्नि का।
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आप किसी अविद्वान, लेकिन शरीफ आदमी को भले ही बरदाश्त कर लें, पर ऐसे विद्वान् को बददाश्त नहीं करना चाहेंगे, जो दुष्ट प्रकृति का हो।