हमारा विनम्र प्रयास स्वयं को भगवान के चरणों में समर्पित करके अविनश्वर परमात्म पद पाने का होना चाहिए।
12.
पितृ रक्त धारा में रहता है जीव कोष का अविनश्वर फूल! इस अविनश्वर फूल अर्थात बीज में पितृ पुरुषों का ज्ञा न.
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पितृ रक्त धारा में रहता है जीव कोष का अविनश्वर फूल! इस अविनश्वर फूल अर्थात बीज में पितृ पुरुषों का ज्ञा न.
14.
इस लिए किसी भी अवतार ने धर्म परिवर्तन की बात नही की, बल्कि अविनश्वर पितृ रक्त धारा को उन्नत करने की बात बताई है।
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और अपने भीतर देखता हूं, तो उसे पाता हूं, जो कि अविनश्वर है-उसका तो कोई भी कुछ भी बिगाड़ने में समर्थ नहीं है!
16.
वे उस देश में पैदा हुए जिसमें जीवन, जगत सृष्टि और प्रकृति के मूल में एकमात्र अविनश्वर चेतन का दर्शन किया गया है और सारी सृष्टि की प्रक्रिया को भी सप्रयोजन स्वीकार किया गया है।
17.
भगवान् यहाँ कह रहे हैं कि जो कुछ भी उत्पन्न होता है, उसका कोई-न कारण अवश्य होता है, किंतु वे तो अजन्मे हैं, साथ ही अव्ययात्मा (अविनश्वर स्वरूप) भी हैं।
18.
यदि आपकी पूर्वजन्म की वासनाएँ शुभ हों, तो पूर्वजन्म की शुभ वासनाओं द्वारा इस समय भी आप शुभ वासना में प्राप्त कराये जा रहे हैं, ऐसी अवस्था में शुभ वासनाओं द्वारा ही क्रमशः अविनश्वर पद को प्राप्त होंगे, इसमें कोई सन्देह नहीं है।।
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सिद्ध, नाथ और संत कल्पलता या कल्पवल्लरी संज्ञा 'उन्मनी' को देते हैं क्योंकि उनके मतानुसार सहजावस्था या कैवल्य की प्राप्ति के लिए उन्मनी ही एकमात्र साधन है जो न केवल सभी कामनाओं को पूरी करनेवाली है अपितु स्वयं अविनश्वर भी है और जिसे मिल जाती हैं, उसे भी अविनश्वर बना देती है।
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सिद्ध, नाथ और संत कल्पलता या कल्पवल्लरी संज्ञा 'उन्मनी' को देते हैं क्योंकि उनके मतानुसार सहजावस्था या कैवल्य की प्राप्ति के लिए उन्मनी ही एकमात्र साधन है जो न केवल सभी कामनाओं को पूरी करनेवाली है अपितु स्वयं अविनश्वर भी है और जिसे मिल जाती हैं, उसे भी अविनश्वर बना देती है।