अव्याप्ति दोष उसे कहते है, जिसमें लक्षण अव्याप्त होता है, यानि अपूर्ण होता है, जैसे 'गाय' उसे कहते है, जो सफ़ेद होती है।
12.
क्या चीज है भ्रम या बंधन? वह है-अति-व्याप्ति दोष (अधिमुल्यन करना), अना-व्याप्ति दोष (अवमूल्यन करना), और अव्याप्ति दोष (निर्मुल्यन करना) ।
13.
अनाव्याप्ति और अव्याप्ति दोष वश ही अवमूल्यन और निर्मूल्यन है-जिससे “भय” है।भय और प्रलोभन पर आधारित सोच-विचार के चलते लाभोन्माद, कामोन्माद, भोगोन्माद के तीन प्रबंध शिक्षा में आ गए।
14.
परिभाषा का पुरानापन और अव्याप्ति दोष ध्यान में आया तो मैंने पिंड छुडाने के लिए कह दिया था-' ' वह आजकल कारों में सर छुपाकर चलती है, इसलिए सरकार कहलाती है।
15.
अव्याप्ति, अतिव्याप्ति आदि दोषों को दूर रखते हुए बारीकी के साथ लक्षण बनाने का प्रयत्न, जो बाद में नव्यन्याय का एक लक्ष्य बन गया, उदयनाचार्य ने इसमें किया है।
16.
किसी भी परिभाषा को दो दोषों से रहित होना चाहिए-१ अतिव्याप्ति दोष २ अव्याप्ति दोष परिभाषा उस वस्तु के लक्षणों का मुख्यत: वर्णन करती है, लेकिन उपरोक्त परिभाषा की कमियों को हमें देखना होगा।
17.
देशभक्ति की ऐसी घटिया अव्याप्ति दोष से युक्त परिभाषा सिर्फ और सिर्फ नारायण स्वामी जैसे चापलूस और स्वार्थी लोग ही गढ़ सकते हैं जिन्हें वास्तव में पता ही नहीं है कि देशभक्ति किस शह का नाम है।
18.
परिभाषा ऐसी होनी चाहिए जो अव्याप्ति और अतिव्याप्ति दोषों से मुक्त हो, योग शब्द के वाच्यार्थ का ऐसा लक्षण बतला सके जो प्रत्येक प्रसंग के लिये उपयुक्त हो और योग के सिवाय किसी अन्य वस्तु के लिये उपयुक्त न हो।
19.
परिभाषा ऐसी होनी चाहिए जो अव्याप्ति और अतिव्याप्ति दोषों से मुक्त हो, योग शब्द के वाच्यार्थ का ऐसा लक्षण बतला सके जो प्रत्येक प्रसंग के लिये उपयुक्त हो और योग के सिवाय किसी अन्य वस्तु के लिये उपयुक्त न हो।
20.
“भ्रमित चैतन्य ईकाई ज्ञान में पारभासी होने के फलस्वरूप अज्ञान-का पूर्ण अभाव नहीं होता, पर साथ ही साथ ज्ञान का भास् होने लगता है, जिससे कभी-कभी यथार्थ का भास् भी होता है, तथा कभी कभी अतिव्याप्ति, अनाव्याप्ति, और अव्याप्ति दोष सहित दर्शन होने लगता है।