देश में समतामूलक समाज बनाने में प्रयासरत् पंडतजी ने भारतवर्ष में, धर्मराज्य जो एक असाम्प्रदायिक राज्य, उच्च विचार में एक विधान का राज्य की स्थापना कि कामना की थी।
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क्या इस युद्ध से संकेत मितला है कि लोकवादी, असाम्प्रदायिक, और सामाजिक एकता पर आधारित राष्ट्रीयता की पुनः प्रतीष्ठा पर ही देश का भविष्य निर्भर है? निश्चय ही हाँ.
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आचार्य भिक्षु की परम्परा में आचार्य तुलसी एवं दसवे आचार्य महाप्रज्ञ न केवल जैन परम्परा अपितु अध्यात्म जगत के बहुचर्चित हस्ताक्षर थे! उन्होंने जो असाम्प्रदायिक सोच एवं अहिंसा, मानवतावादी दृष्टिकोण दिया है वः एक मिसाल है!
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को अपना नेतृत्व प्रदान कर पाकिस्तान का आधार तो जिन्ना से भी पहले रख दिया था, और सुभाष के बाद जिन्ना जैसे निरपेक्ष असाम्प्रदायिक योग्य व्यक्ति को भयानक खतरनाक निष्ठुर, साम्प्रदायिक, देशद्रोही, इसलाम-के-भविष्य-नाशी, हिन्दुओं के असुर बना दिया।
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शोषणमुक्त समाज, असाम्प्रदायिक राजनीति और जातिभेदरहित भारत की उद्रभावना करनेवाला 1857 आज भी हमारे लिए प्रेरणा का प्रबल स्रोत है | अपनी जातीय स्मृति को सुरक्षित रखने और उसे अपने भविष्य का प्रकाश स्तम्भ बनाने में साहित्य अद्वितीय भूमिका निभा सकता है |
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कोंग्रेस बीजेपी को जुट बोल-बोल कर एक सांप्रदायिक पार्टी के रूप में बदनाम कर चुकी है जबकि कोंग्रेस खुद आख मिच कर हर मुद्दे पर मुस्लिम और क्रिस्चानो की हिमायत करती है और खुद को धर्मनिरपेक्ष पार्टी के रूप में स्थापित करती है. जबकि वो खुद एक घोर असाम्प्रदायिक पार्टी है.
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पंडितजी का लखनऊ का भाषन ऐसा पहला भाषण था, जिसमें उन्होंने काश्मीर तथा हैदराबाद की घटनाओं के असाम्प्रदायिक पहलू पर जोर दिया;और उसके बाद तो पंडितजी के और आपके अनेक भाषणों और वक्तव्यों ने देश को सही नेतृत्व और मार्गदर्शन प्रदान किया तथा अविश्वास, भय और घृणा की इन भावनाओं पर अंतिम प्रहार किया,जिन्हें यदि बेरोकटोक फैलने दिया जाता तो उसका निश्चित परिणाम मुसलमानों के व्यापक संहार में आता।
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क्या आप सब उनमे से एक नही, मैं एक टेलीविजन के एक प्रख्यात चैनल जिसमे सबसे अधिक बुद्धिजीवी पत्रकारों का जमावडा है, मैं उनको काफ़ी दिनों से देख रहा था, उनके विचारो को सुन रहा था, मुझे काफ़ी दुःख हुआ की इनके पास भी कोई जवाब नही है, भ्रम फैलाने में इनका भी उतना बड़ा हाथ है, जितना की इन कथित सांप्रदायिक, असाम्प्रदायिक दलों का है ।
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इस प्रकरण में कम्युनिस्टों की भूमिका वैसी हास्यास्पद नहीं है, जैसी कि कांग्रेसियों की बन गई है | वे आडवाणीजी के भूतकाल पर व्यंग्य कर रहे हैं लेकिन उनकी बात को गलत नहीं बता रहे हैं | सबसे संजीदा प्रतिकि्रया समाजवादी पार्टी की है, जिसके नेता मुलायमसिंह यादव आडवाणी के असाम्प्रदायिक और राष्ट्रहितकारी बयानों की सराहना कर रहे हैं तथा नेहरू और जिन्ना की भूमिकाओं के पुनर्मूल्यांकन की मांग कर रहे हैं |
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पंडितजी का लखनऊ का भाषन ऐसा पहला भाषण था, जिसमें उन्होंने काश्मीर तथा हैदराबाद की घटनाओं के असाम्प्रदायिक पहलू पर जोर दिया ; और उसके बाद तो पंडितजी के और आपके अनेक भाषणों और वक्तव्यों ने देश को सही नेतृत्व और मार्गदर्शन प्रदान किया तथा अविश्वास, भय और घृणा की इन भावनाओं पर अंतिम प्रहार किया, जिन्हें यदि बेरोकटोक फैलने दिया जाता तो उसका निश्चित परिणाम मुसलमानों के व्यापक संहार में आता।