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अस्पृश्यता उन्मूलन उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
11.सरकार ने समाजवाद के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कई कानूनों जैसे अस्पृश्यता उन्मूलन, जमींदारी अधिनियम, समान वेतन अधिनियम और बाल श्रम निषेध अधिनियम आदि बनाया है.

12.सरकार ने समाजवाद के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कई कानूनों जैसे अस्पृश्यता उन्मूलन, जमींदारी अधिनियम, समान वेतन अधिनियम और बाल श्रम निषेध अधिनियम आदि बनाया है.

13.स्पर्धा का विषय “ अस्पृश्यता समाज के लिए कलंक है ” एवं निबंध के लिए “ अस्पृश्यता उन्मूलन के लिए संवैधानिक प्रावधान एवं उनका व्यवहारिक जीवन में प्रभाव ” विषयों पर आयोजन किया गया था।

14.महात्मा गांधी के 18 सूत्री रचनात्मक कार्य में अस्पृश्यता उन्मूलन, मद्यनिषेध, ग्रामीण स्वच्छता, नई और प्राथमिक शिक्षा, प्रौढ़-शिक्षा, महिला-विकास, आर्थिक समानता, कुष्ठरोग निवारण, छात्र, किसान, मजदूर, राष्ट्र भाषा, स्वास्थ्य शिक्षा जैसे विषय शामिल थे।

15.बापू ने अहिंसा, प्रेम, सदाचार, सर्व धर्म समभाव, सत्याग्रह, सत्य निष्ठा, भारत छोडो, स्वराज्य, खादी, आश्रम निवास, अस्पृश्यता उन्मूलन, हर मानव को समान मानो, सर्वोदय, शुचिता व स्वछता के प्रति आग्रह, खेतिहर किसान, मजदूर के प्रति प्रेम व उनके उन्नति के लिए प्रयास ऐसे कई सारे सत्कार्य बापू जी ने किये थे।

16.श्रीगुरू जी एक व् यक्ति न होकर एक विचाधारा थे, वे एक ऐसी विभूति थे जिन् होने चारों पूज् य शंकराचार्यो विभिन् न संतों को एक मंच पर लाया, और संतो से कहलवाया कि हिन् दू पतित नही है, अस्पृश्यता उन्मूलन हेतु उसका निदान प्रस्तुत कर ही श्रीगुरुजी ने अपने दायित्व को पूर्ण हुआ नहीं मान लिया।

17.बापू ने अहिंसा, प्रेम, सदाचार, सर्व धर्म समभाव, सत्याग्रह, सत्य निष्ठा, भारत छोडो, स्वराज्य, खादी, आश्रम निवास, अस्पृश्यता उन्मूलन, हर मानव को समान मानो, सर्वोदय, शुचिता व स्वछता के प्रति आग्रह, खेतिहर किसान, मजदूर के प्रति प्रेम व उनके उन्नति के लिए प्रयास ऐसे कई सारे सत्कार्य बापू जी ने किये थे।

18.उसने अपनी बीमारी को भी आड़े नही आने दिया।” (श्रीगुरूजी समग्र दर्शन हिन्दी खण्ड 5 पृ 101) श्रीगुरू जी एक व्यक्ति न होकर एक विचाधारा थे, वे एक ऐसी विभूति थे जिन्होने चारों पूज्य शंकराचार्यो विभिन्न संतों को एक मंच पर लाया, और संतो से कहलवाया कि हिन्दू पतित नही है, अस्पृश्यता उन्मूलन हेतु उसका निदान प्रस्तुत कर ही श्रीगुरुजी ने अपने दायित्व को पूर्ण हुआ नहीं मान लिया।

19.समस्त धर्माचार्यों ने हिन्दू समाज के समस्त घटकों से अस्पृश्यता उन्मूलन का आह्वान करते हुए सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें घोषणा की गई थी कि: '' समस्त हिन्दू-समाज को अविभाज्य एकात्मता के सूत्र में पिरोकर संगठित करने एवं स्पृश्य-अस्पृश्य की भावना व प्रवृत्ति से प्रेरित विघटन को रोकने के उद्देश्य की प्राप्ति हेतु विश्व भर के हिन्दुओं को अपने पारस्परिक व्यवहार में एकात्मता एवं समानता की भावना को बरकरार रखना चाहिए।

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