क्यों मिलती है ज़िंदगी टुकड़ों-टुकड़ों में कितना कठिन होता है इन बिखरे टुकड़ों को समेटना इन्हें मिलाकर एक संपूर्ण सार्थक आकृति बनाना कितना भी जतन करो टूटे, बिखरे टुकड़ों में से कुछ गुम हो ही जाते हैं और ज़िंदगी की विकृति कठोर सत्य बन मुंह चिढा जाती है.