जुलाई ३, १९०१ जून २७ की रात लेव निकोलायेविच अस्वस्थ हो गये-आज उन्होंने मुझसे कहा, “मैं अब चौराहे पर खड़ा हूं, और आगे जाने वाला मार्ग (मृत्यु की ओर) अच्छा है, और पीछे (जीवन) का भी अच्छा था.
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दो-इक दिन नाराज़ रहेंगे, बाबूजी की फ़ितरत है, चांद कहां टेढ़ा रहता है, सालों-साल सितारों से ये शेर आपके कुछ दूसरे मशहूर शेरों से भी आगे जाने वाला शेर है इसे संभाल कर रखियेगा, ज़माना ख़राब है ।
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जून २ ७ की रात लेव निकोलायेविच अस्वस्थ हो गये-आज उन्होंने मुझसे कहा, ” मैं अब चौराहे पर खड़ा हूं, और आगे जाने वाला मार्ग (मृत्यु की ओर) अच्छा है, और पीछे (जीवन) का भी अच्छा था.
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और जैसे अचानक सलिल भैया ने यह बता कर चौंका दिया कि रोज़ बांद्रा से भी आगे जाने वाला वह शख्स आज लोअर परेल पर ही उतर गया............. सलिल भैया! यह यात्रा तो कभी न समाप्त होने वाली है न! उतरने वाला यात्री अब हमारे ट्रैक पर नहीं किसी दूसरे ट्रैक पर यात्रा करेगा.
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मैं तो सामान्य जीवन मे घटी हर घटना को किसी व्यक्ति के चरित्र से जोड़ कर देखता हूँ, कही किसी जाम मे फंसी हुई गाडियों की line तोड़कर आगे जाने वाला व्यक्ति, मुश्किल वक़्त मे किसी अनजान इन्सान के काम न आने वाला इन्सान, अपनी बेटी की शादी उसकी इच्छा के विपरीत अपने आप तय करने वाला इन्सान...
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पर एक तो उसे यह मालूम नहीं था कि किन्ज़ान कहाँ, और कितनी दूर जा रहा है, दूसरे वह इस विचार से भी थोड़ा हिचकिचा रही थी कि टैक्सी ड्रायवर उसे इतनी रात गए इस तरह एक युवक का पीछा करते देख न जाने क्या सोचे? वह भी तब, जब इस ख़ुफ़िया उपक्रम में उसके आगे जाने वाला लड़का खुद उसका बेटा ही हो.
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हाय रे नीरज की वो हाथी की तरह झूमती मस्त धीमी चाल जिससे कभी नीरज तो कभी आगे जाने वाला परेशान हो जाता है, दाल ही काली कर दी होगी, विचित्र प्राणी जब कही जाते है तो ऐसे हादसे हंगामे तो हो ही जाते है “ जैसे आप लोंगों ने बताया है अपुन भी देखेंगे इस यात्रा में कितना समय लगता है तभी पता चलेगा कि कैसी यात्रा होगी ”