नाम हैं-औदुम्बरायण, औपमन्यव, शाकटायन, गार्ग्य, वार्ष्यायणि, आग्रहायण, और्णवाभ, शाकपूणि, तैटीकि, गालव, स्थौलाष्ठीवी और क्रोष्टु।
12.
पर कुछ यज्ञ नियमित रूप से सब आर्य गृहस्थों को करने पड़ते थे. इन यज्ञोंका क्रम गोपद ब्राह्मण में इस प्रकार बताया गया है--अग्न्याधान, पूर्णाहुति, अग्निहोत्र, दशपूर्णयास, आग्रहायण (ग्ववसस्येष्ठि) चातुर्मास्य, पशुवध, अग्नि-ष्टोम, राजसूय, बाजपेय, अश्वमेध, पुरूषमेध, सर्वमेध, दक्षिणावालेबहुत दक्षिणा-वाले और असंख दक्षिणावाले.
13.
गृह्यसूत्र [204] कहते हैं कि केवल तीन ही अष्टका कृत्य होते हैं ; मार्गशीर्ष (आग्रहायण) की पूर्णिमा के पश्चात् आठवीं तिथि (इसे आग्रहायणी कहा जाता था) ; अर्थात् मार्गशीर्ष, पौष (तैष) एवं माघ के कृष्ण पक्षों में।