फिर तड़प ही तड़प बाकि रहती है दिल में और ये आग सा जलता रह जाता है.....
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रात दिन में ढल रहा हूँ रात दिन में ढल रहा हूँ आग सा मैं जल रहा हूँ,
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आप अभी जब इस पोस्ट को पढ़ रहे हैं, तब क्या आपको ये अनुमान है की आपकी कुर्सी के नीचे आग सा धधकता एक गोला है.
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आप अभी जब इस पोस्ट को पढ़ रहे हैं, तब क्या आपको ये अनुमान है की आपकी कुर्सी के नीचे आग सा धधकता एक गोला है.
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-नागार्जुन-3. ख़ूनी पंजा-ये खूनी पंजा किसका है ये मुल्क में कहर सा बरपा है ये शहर में आग सा बरसा है ये खूनी पंजा किसका-गोरख-
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प्रति.: दैव! राधेय ने यह भुजंगास्त्र छोड़ा है देखिए अपने मुखों से आग सा विष उगलते हुए अपने सिर की मणियों से चमकते हुए इन्द्रधनुष से पृथ्वी को व्याकुल करते हुए देखने ही से वृक्षों को जलाते हुए यह कैसे डरावने सांप निकले चले आते हैं।
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बच्चे से खिलखिलाती हँसी या कि बहार का कोई फ़ूल लकड़ियों मे जलती आग सा कोई गीत दिल मे ही छुपा लेते हो प्यार और मेरे सामने जाहिर नही होने देते डरते हो कि मजाक न बने तुम्हारा अपनी खुशियों को जाहिर नही होने देते रखते हो खुद से भी छुपा कर
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आज सूरज अपने रुबाब पर था आसमान को आग सा दहका रहा था! दिहारी के लिए तैयार हो रही बजंता ने एक और फेंट अपने सिर पर बांधी ताकि सिर को और सिर पर पड़े बोझ को अच्छी तरह से निभा सके! सामने पड़े दुधमुहे बच्चे की आवाज को दरकिनार कर निकल पड़ी मजदूरी पर बिना तपिश की परवाह किए क्योंकि पेट की तपिश सूरज की तपिश से ज्यादा होती है!