| 11. | आत्मा या आत्मन् पद भारतीयदर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रत्ययों (विचार) में से एक है।
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| 12. | वर्तमान सभ्यता के प्रभाव में आत्मन् अपने वास्तविक स्वरूप को भूलती जा रही है.
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| 13. | अस्तित्ववादियों के अनुसार मनुष्य का व्यक्तित्व अर्थात आत्मन् तथा बाह्यसत्ता दोनों अलग-अलग हैं.
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| 14. | और अभी के तनावों और बिखरावों में भी मनुष्य सुगठित आत्मन् की स्थायी अनुभूति कर सकता है!
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| 15. | बुद्धिजन्य होने के कारण वस्तुएं सत्तावान होती हैं, जबकि अनुभवजन्य होने के कारण आत्मन् अस्तित्ववान.
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| 16. | क्या अभी के तनावों और बिखरावों में मनुष्य सुगठित आत्मन् की किसी स्थायी अनुभूति को जी सकता है?
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| 17. | इसलिए न तो वह बुद्धिजन्य है, न सत्तावान. फिर आत्मन् की प्रतीति कैसे होती है.
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| 18. | और अभी के तनावों और बिखरावों में भी मनुष्य सुगठित आत्मन् की स्थायी अनुभूति कर सकता है!
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| 19. | क्या अभी के तनावों और बिखरावों में मनुष्य सुगठित आत्मन् की किसी स्थायी अनुभूति को जी सकता है?
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| 20. | यही उसकी स्वतंत्र सत्ता का प्रतीक है, यही आत्मन् को उसके बोध के लिए आकर्षित करता है.
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