जो व्यक्ति आत्मचिंतन, आत्मशोधन आदि करता है वह स्वयं को ब्रह्म में समाहित करते हुवे आत्मसिद्धि को प्राप्त करता है ।
12.
इसके विपरित, जो वाणी आत्मसिद्धि और सच्चे अनुभव से उद्भूत होती है, वह सदा अपने उद्देश्य में सफल होती है।
13.
अस्तु, आदित्य रूप से ऊँ की अथवा प्रणवरूपी उद्गोथ ब्रह्म के “मर्ग” की घ्यानोपासना, प्रणवपूर्वक गायत्री मंत्र के साथ्, आत्मसिद्धि का साधन है।
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अस्तु, आदित्य रूप से ऊँ की अथवा प्रणवरूपी उद्गोथ ब्रह्म के “मर्ग” की घ्यानोपासना, प्रणवपूर्वक गायत्री मंत्र के साथ्, आत्मसिद्धि का साधन है।
15.
आत्मसिद्धि वह गुण है जो उसके व्यक्तित्व के निर्णायक / निर्धारक घटक का कार्य करती है, पर इसके लिए शेष दोनों स्टेजेस का पूरा होना अनिवार्य शर्त है.
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आत्मसिद्धि वह गुण है जो उसके व्यक्तित्व के निर्णायक / निर्धारक घटक का कार्य करती है, पर इसके लिए शेष दोनों स्टेजेस का पूरा होना अनिवार्य शर्त है.
17.
निश्चित ही इन स्थानों ने आत्मसिद्धि में साधक होकर मुमुक्षुओं को अपनी ओर आकृष्ट किया होगा किंतु किंवदंती रूप से प्रचलित ये पुण्यगथाएँ आज भी शोधक की प्रतीक्षा हैं।
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निश्चित ही इन स्थानों ने आत्मसिद्धि में साधक होकर मुमुक्षुओं को अपनी ओर आकृष्ट किया होगा किंतु किंवदंती रूप से प्रचलित ये पुण्यगथाएँ आज भी शोधक की प्रतीक्षा हैं।
19.
क्योंकि यह मनुष्य को एक तरह से छद्म आत्मसिद्धि की तरफ मोड़ने का प्रयास है, जब निचे के दो स्टेजेस पुरे नही होते इस प्रकार की बात सोंचना भी मुर्खता है की व्यक्ति उन सुनहले नियमों से प्रभावित होगा.
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क्योंकि यह मनुष्य को एक तरह से छद्म आत्मसिद्धि की तरफ मोड़ने का प्रयास है, जब निचे के दो स्टेजेस पुरे नही होते इस प्रकार की बात सोंचना भी मुर्खता है की व्यक्ति उन सुनहले नियमों से प्रभावित होगा.