आज भी ऐसी आदिम जन जातियां हैं जहाँ की स्त्रियों के स्तन की ओर इशारा करके यह पूछने पर कि यह क्या है, उनका जवाब होता है कि इससे वे अपने बच्चों को दूध पिलाती हैं..
12.
जिस स्थान पर नियम कानून बनाये जाते है उसी स्थान पर अगर नियमो की धज्जियाउड़ाई जाए तो ये आम जनता के साथ छलावा है ॥ ऐसा ही कुछ कारनामा कर दिखाया है आदिम जन कल्याण मंत्री विजय शाह ने मध्य प्रदेश में.....
13.
छत्तीसगढ की आदिम जन जाति आदिवासी है और यहीं सच्चे अर्थों में छत्तीसगढ ‘ लोक ' के निवासी हैं इस कारण छत्तीसगढ की संस्कृति ही आदिवासी संस्कृति है इसे अलग रूप में प्रस्तुत करना छत्तीसगढ को अपने जडो से विलग करना होगा ।
14.
वह इसलिये कि “ इन्डिजिनस पीपल ”, यानि आदिम जन जातियों की सभ्यता, धर्म वगैरा यूरोपीय औपनिवेशिक ताकतों के द्वारा दलित और नष्ट कर दिये गये हैं, तो उन्हें यह कहना कि आप बाकी के धर्मों को भी उतनी ही मान्या दीजिये, “ पोलिटिकली करेक्ट ” नहीं होता.
15.
@ संजीव तिवारी भाई यह एक साधारण सा तर्क है कि महाभारत की कथा के साथ पांचों पांडव भाई छत्तीसगढ़ पहुंचते है चूंकि वहां पर भीम नाम का प्रबल चरित्र पहले से ही मौजूद है इसलिए छत्तीसगढ़ के आदिम जन अपने लोक नायक भीम के नाम से अनुरूपता रखने वाले पांडव भीम के किस्से छांट छांट कर चुनते हैं और पंडवानी गढते हैं!
16.
समीर जी, गिरिजेश जी,पंडित दिनेश जी,शुक्रिया!@संजीव तिवारी भाई यह एक साधारण सा तर्क है कि महाभारत की कथा के साथ पांचों पांडव भाई छत्तीसगढ़ पहुंचते है चूंकि वहां पर भीम नाम का प्रबल चरित्र पहले से ही मौजूद है इसलिए छत्तीसगढ़ के आदिम जन अपने लोक नायक भीम के नाम से अनुरूपता रखने वाले पांडव भीम के किस्से छांट छांट कर चुनते हैं और पंडवानी गढते हैं!
17.
बस् तर की पीडा को सच् चे मन से स् वीकारते हुए शोषण के हद तक दोहन पर उनके गीत मुखरित होते हैं-‘ यहां नदी नाले झरने सब / आदिम जन के सहभागी हैं / यहां जिंदगी बीहड वन में / पगडंडी सी चली जा रही / यहां मनुजता वैदेही सी / वनवासिन है वनस् थली में / आदिम संस् कृति शकुन् तला सी / प् यार लुटाकर दर्द गा रही … '
18.
बस्तर की पीडा को सच्चे मन से स्वीकारते हुए शोषण के हद तक दोहन पर उनके गीत मुखरित होते हैं-‘यहां नदी नाले झरने सब / आदिम जन के सहभागी हैं / यहां जिंदगी बीहड वन में / पगडंडी सी चली जा रही / यहां मनुजता वैदेही सी / वनवासिन है वनस्थली में / आदिम संस्कृति शकुन्तला सी / प्यार लुटाकर दर्द गा रही...' इनके समकालीन अनेक सहयोगी एवं साहित्यकार स्वीकारते हैं कि लाला जी की सरलता एवं सभी पर विश्वास करने व ज्ञान बाटने की प्रवृत्ति के बावजूद उनकी साहित्तिक उपेक्षा की गई है ।