आर्थिक विश्लेषण करते हुए वे विचारों के भौतिक आधार से अलग स्वतंत्र दृष्टियों से फिसलते हुए स्थापित करते हैं कि क्लासिकल माक्र्सवाद के बजाय भारत में स्तालिन का उग्र माक्र्सवाद ज्यादा पनपा और माक्र्सवादी यह भूलने लगे कि भौतिक आधार परिवर्तन की सीमाएं ही डिटरमिन यानी निर्धारित करता है, लेकिन इन सीमाओं के अंतर्गत परिवर्तन लाने में तो मनुष्य यानी मनुष्य की वैचारिक अथवा मानसिक प्रक्रियाओं की ही प्रधान भूमिका होती है।
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आर्थिक विश्लेषण करते हुए वे विचारों के भौतिक आधार से अलग स्वतंत्र दृष्टियों से फिसलते हुए स्थापित करते हैं कि क्लासिकल माक्र्सवाद के बजाय भारत में स्तालिन का उग्र माक्र्सवाद ज्यादा पनपा और माक्र्सवादी यह भूलने लगे कि भौतिक आधार परिवर्तन की सीमाएं ही डिटरमिन यानी निर्धारित करता है, लेकिन इन सीमाओं के अंतर्गत परिवर्तन लाने में तो मनुष्य यानी मनुष्य की वैचारिक अथवा मानसिक प्रक्रियाओं की ही प्रधान भूमिका होती है।