ख्वाब है जब तक बिक जाते है जज्बात उनके नाम मिल जाये तो फिर खाक हो जायेंगे कहा भी जाता है गुलामों का पेट कभी नहीं भरना चाहिये भर गया तो आजाद हो जायेंगे इसलिये परदेसी पहले इनाम के लिये लपकाते हैं फिर पीछे हट जाते हैं देश चलता रहता है उसकी आड़ में जज्बातोंे का व्यापार दूर के ढोल सुहावने होते हैं इसलिये उनको दूर रखो देशी विदेशी जज्बातों के सौदागरों का लगता यह कोई आपसी करार है ………………………. यह आलेख इस ब्लाग ‘ दीपक भारतदीप की सिंधु केसरी-पत्रिका ' पर मूल रूप से लिखा गया है।