संकर लवण सामान्य द्विक लवण के सदृश होते हैं, परंतु विलयन में इनका व्यवहार द्विक लवण से भिन्न होता है, क्योंकि इनके आयनन की रीति भिन्न होती है।
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संकर लवण सामान्य द्विक लवण के सदृश होते हैं, परंतु विलयन में इनका व्यवहार द्विक लवण से भिन्न होता है, क्योंकि इनके आयनन की रीति भिन्न होती है।
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संकर लवण सामान्य द्विक लवण के सदृश होते हैं, परंतु विलयन में इनका व्यवहार द्विक लवण से भिन्न होता है, क्योंकि इनके आयनन की रीति भिन्न होती है।
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तत्वों के विशिष्ट समस्थानिक दिखाने, उनके परमाणु भार दिखाने एवं उनके आयनन की अवस्था या आक्सीकरण अवस्था आदि दिखाने के लिये रासायनिक संकेतों के साथ 'सबस्क्रिप्ट' एवं 'सुपरस्क्रिप्ट' भी जोड़े जाते हैं।
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तत्वों के विशिष्ट समस्थानिक दिखाने, उनके परमाणु भार दिखाने एवं उनके आयनन की अवस्था या आक्सीकरण अवस्था आदि दिखाने के लिये रासायनिक संकेतों के साथ 'उपलिपि' (सबस्क्रिप्ट) एवं 'अधिकलिपि' (सुपरस्क्रिप्ट) भी जोड़े जाते हैं।
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इस सिद्धांत के अनुसार संतत अवशोषण तभी होता है जब कि बद्ध इलेक्ट्रॉन प्रकाशिक आयनन (photoionnisation) द्वारा मुक्त होता और संतत उत्सर्जन तभी होता है जब मुक्त इलेक्ट्रॉन का ग्रहण (capture) आयन द्वारा होता है।
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इस तुलना से यह पता चला कि परमाणु हाइड्रोजन का प्रकाशिक आयनन ऊष्ण तारों में मुख्य रूप से भाग लेता है जब कि सूर्य और इसी प्रकार के अन्य तारों के लिए संतत अवशोषण का अन्य स्रोत होना चाहिए।
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इस तुलना से यह पता चला कि परमाणु हाइड्रोजन का प्रकाशिक आयनन ऊष्ण तारों में मुख्य रूप से भाग लेता है जब कि सूर्य और इसी प्रकार के अन्य तारों के लिए संतत अवशोषण का अन्य स्रोत होना चाहिए।
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1900 ई. के प्लैक के विकिरण नियम परमाणु ऊर्जास्तर की मान्यता आयनन विभव (ionisation potential) एवं विस्तृत प्रयोगशाला और परमाणु स्पेक्ट्रमी (atomic spectra) के सैद्धांतिक अन्वेषण से तारों की भौतिक दशा और उनके संघटन का परिणात्मक अध्ययन संभव हो सका है।
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साहा के आयनन समीकरण की परिशुद्ध व्युत्पत्ति आर. एच. फाउलर द्वारा प्रस्तुत की गई जिन्होंने मिल्न के संग स्पेक्ट्रम वर्ग के साथ रेखाशाक्ति के परिवर्तन सिद्धांत को विकसित किया जिससे कई पक्षों में साहा के प्रारंभिक कार्यों में महत्वपूर्ण सुधार प्रस्तुत हुआ।