और क्या इसीलिए हम सरल व संकोची तरीके से कही गई गहरी बात की गहराई को अनदेखा कर जाते हैं? क्या घटना-कार्य-व्यापार की योजना अपने-आप में अर्थ-निर्माण की यथेष् ट प्रक्रिया नहीं है, बल्कि लेखक की कथन-भंगी और उसके द्वारा उछाले गए सुराग (क्लूज़) ही उस योजना पर अर्थ का आरोपन कर पाते हैं? क्या हमारी आलोचना यह मानती है कि सुराग-प्रेम नहीं दिखलाते हुए रचे गए अपेक्षाकृत मुक्तमुखी पाठ वस्तुतः अर्थ की दृष् टि से विपन्न पाठ हैं?