कार्पोरेट घरानों के सुर में सुर मिलाने वाले मीडिया ने वही घिसा-पिटा राग आलापना शुरू किया कि माओवादियों और सरकार के बीच हो रहे संघर्ष में निर्दोष आदिवासी पिसते जा रहे हैं।
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अरे छोड़ो यह राग आलापना, जो बुराई कर रहे हैं वह ख़ुद ही बतायें कि क्या अगर उनको इस फ़िल्म की टीम का हिस्सा बनने के लिए कहा जाता तो क्या वह नहीं बनते।
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पर बस भई बहुत हुआ! अब समय आ गया है कि हम नेताओं के बारे में अपनी राय बदल ले! बहुत हो गया रिश्वतखोरी पर राग आलापना भ्रष्टाचार पर भाषण देना, काले धन पर कागज काले करना और काली करतूतों को कोसना।