इससे पता चलता है कि दुनिया में कोई भी चीज निरपेक्ष नहीं है-हमारा आसंग तय करता है कि हम क्या होंगे और कैसा दिखेंगे।
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इससे पता चलता है कि दुनिया में कोई भी चीज निरपेक्ष नहीं है-हमारा आसंग तय करता है कि हम क्या होंगे और कैसा दिखेंगे।
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अक्रूर के अतिरिक्त श्वफल्लक के अन्य पुत्रों का नाम-आसंग, सारमेय, मृदुर, म्रिदुविद, गिरि, धर्मवृद्ध, सुकर्मा, क्षेत्रोपेक्ष, अरिमर्दन, शत्रुघ्न, गंधमादन और प्रतिवाहु था तथा पुत्री का नाम सुचीरा था.
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जैसे सक्ति और आसक्ति का अर्थ एक ही है चिपक जाना या सट जाना और जिसे अंग्रेजी में अटैचमेण्ट (attachment) कहते हैं ; ठीक उसी प्रकार संग और आसंग का भी यही अर्थ है।
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बल्कि बेहतर तो यह है कि तरक्की की दौड़ में हम थोड़े थोड़े अंतराल के बाद, कुछ वक्त के लिए अपनी पुरानी यादों में लौटें, अपने बचपन को देखें, अपने पुराने दोस्तों पर नजर डालें, गांव-कस्बे में पीछे छूटे अपने परिवार के लोगों के पास जाकर मिलने का वक्त निकालें, कभी छुट्टी लेकर उन जगहों पर जाएं, जहां से विगत जीवन के आसंग जुड़ें हों ….
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अब समय गुजरने के साथ-साथ आयु की परिपक्वता और कई घटनाओं से दो-चार होने के पश्चात् मेरा यह निश्चित और दृढ़ मत है कि ऐसी कोई शक्ति (ईश्वर) जो मानव जीवन को प्रभावित, नियंत्रित या दिग्दर्शित करती है, उसकी लय और ताल की बद्धता, ऊंचाई और गहराई के ग्राफ को निर्धारित करती है सांसारिक दुख और सुख के क्षण उत्पन्न करती है या उसे हर लेती है-कतई अस्तित्वमान नहीं है, और यदि है तो उसका मानव जीवन से कोई आसंग या सरोकार नहीं है...