इस से तो यह लगता है की मैक्समूलर यहाँ आस्तिकवाद की परिभाषा दे रहा है.
12.
प्रकृति का विधान कर्तव्य-विज्ञान और प्रकृति से परे का विधान अध्यात्मवाद एवं प्रभु का मंगलमय विधान आस्तिकवाद है ।
13.
असल बात तो यह लगती है की विश्व में दो ही रिलिजन है, एक आस्तिकवाद और दूसरा नास्तिकवाद.
14.
आस्तिकवाद की दया, उदारता, क्षमा, न्याय, सत्य आदि सद्गुण इस नास्तिक साम्यवादी अधिनायकवाद के लिए सर्वथा असत्य तत्व है।
15.
कर्मकाण्ड करने पर पाप कर्मों के दण्ड से छुटकारा मिलने की बात सरेआम कही जाती हैं, ऐसी दशा में आस्तिकवाद का मूल उद्देश्य ही नष्ट हो जाता है।
16.
यह भली-भाँति जान लेना चाहिये कि मानवता भौतिकवाद की दृष्टि से प्राकृतिक, आस्तिकवाद की दृष्टि से अपौरुषेय विधान और अध्यात्मवाद की दृष्टि से अपना ही स्वरूप तथा स्वभाव है।
17.
आस्तिकवाद मत के अनुयायी सृष्टि के चक्रों में विश्वास करते हैं, जहां आत्मा एक अबौद्धिक वस्तु के रूप में केवल भगवान की इच्छा पर निर्भर होकर कर्म के आधार पर शरीर विशेष की ओर आकर्षित होती है.
18.
अगर आप भौतिक उन्नति करते है, तोह उसमे सयम, सदाचार, सेवा, त्याग और श्रम होना चाहिए | आस्तिकवाद की उन्नति, द्रढ़ता, सरल विश्वास और शरणागति से होती है | और अध्यात्मवाद की उन्नति विचार, त्याग और निज ज्ञान के आदर से होती है | संत समागम २ / ८ २-८ ३
19.
अब प्रश्न यह होता है कि हम अपने गुरु, नेता या शासक कैसे बनें? भौतिकवाद की दृष्टि से मानव-मात्र को जो विवेक प्राकृतिक नियमानुसार मिला है, आस्तिकवाद की दृष्टि से जो विवेरु प्रभु की अहैतुकी कृपा से मिला है और अध्यात्मवाद की दृष्टि से जो अपनी ही एक विभूति है, वह विवेक ही वास्तव में गुरु, नेता तथा शासक है, जो प्रत्येक भाई-बहिन को स्वतः प्राप्त है ।