उन दिनों संतोष सुमन दैनिक हिन्दुस्तान में स्ट्रींगर थे और इंची टेप के हिसाब से खबरें लिखा करते थे (उनकी खबरों को इंच के हिसाब से प्रति इंच एक रुपया दिया जाता था, हम लोग ऐसे साथियों को इंची-टेप वाला पत्रकार कहते थे, ये चलन कई अखबारों में था यहां तक कि दिल्ली के जनसत्ता में भी, जितने इंच की खबर, उतने रुपये).
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जिस दौर में ब्राह्मण लोग फोर्ट विलियम के साहबों को यकीन दिला रहे थे कि उनकी जाति केवल कर्मकांडपरक संदर्भ में नहीं, बल्कि सामाजिक व्यवहार मात्र में सर्वोच्च मानी जाती है, जिस समय सेंसस कमिश्नर रिज्ले साहब रक्त शुद्धि का निर्धारण करने के लिए इंची टेप से लोगों की नाकें नाप रहे थे ; उसी समय मारवाड़ रियासत की ‘ मर्दुमशुमारी ' (1891) के आधार पर मारवाड़ रियासत के पचीस लाख बाशिंदों की “