इन लोगों ने मिलकर जिन सौ लोगों को मारा है, वे सभी निम्न मध्यमवर्गीय परिवार के लाड़ले थे, बड़े घरों और यहाँ तक कि मध्यमवर्गीय परिवारों के भी लड़के सी.आर.पी.एफ़. में भर्ती होने नहीं जाते…वे लोग जाते हैं, जिन्हें मेहनत करने से डर नहीं लगता और जिनके माँ-बाप उन्हें डॉक्टरी और इन्जीनियरी नहीं पढ़ा सकते…वे रोटी के लिये जाते हैं लड़कर मरने…शहीद होने…पता नहीं इन लोगों को मारकर कैसा समाज बनाना चाहते हैं नक्सली…?