दर्शन जिस मनुष्य का अध्ययन करता है वह मात्र इन्द्रियगोचर भौतिक इकाई नहीं है।
12.
कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता की तृप्ति के लिए ही पूरा ज्ञानगोचर और इन्द्रियगोचर का प्रयोग है.
13.
अभी तक के हज़ारों वर्ष के मानव इतिहास में इन्द्रियगोचर वस्तुओं को पहचानने की व्यवस्था दिया.
14.
रूप और गुण मनुष्य को इन्द्रियगोचर हैं-मतलब इन्द्रियों की मदद से मनुष्य-जीवन को समझ आते हैं।
15.
कामधेनु गौऊ इन्द्रियगोचर जगत् को, प्रकृति को निरूपित करती है जो अपने उपासकों को सब फल प्रदान करती है।
16.
संपृक्तता समझ में नहीं आ रहा है, उसका कारण है-इन्द्रियगोचर और ज्ञानगोचर का भेद स्पष्ट नहीं होना.
17.
इसीलिये अनुभव तक पहुँचने के लिए, हर अध्ययन करने वाले व्यक्ति को इन्द्रियगोचर वस्तु और ज्ञानगोचर वस्तु पहचानने की आवश्यकता है.
18.
“मैं इन्द्रियगोचर संपन्न हूँ, ज्ञानगोचर संपन्न हो सकता हूँ”-इस विश्वास के साथ चलें, तो ध्यान देने पर बात बन जायेगी.
19.
पर आकाश, काल, धर्म और अधर्म ये चार अजीव द्रव्य इन्द्रियगोचर नहीं हैं, क्योंकि उनमें स्पर्श, गन्ध, रस और रूप नहीं हैं।
20.
और भी स्थूल दृष्टि से देखने पर प्रकृति मानवेतर का वह अंश हो जाती है जो कि इन्द्रियगोचर है-जिसे हम देख, सुन और छू सकते हैं, जिसकी गन्ध पा सकते हैं और जिसका आस्वादन कर सकते हैं।