ज्यों-ज्यों रेखाछिद्रों की संख्या बढ़ती जाती है, द्वितीयक उच्चिष्ठ की धारियाँ क्षीण होती जाती हैं और मुख्य उच्चिष्ठ की धारियाँ अत्यंत तीक्ष्ण होती जाती हैं ।
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ज्यों-ज्यों रेखाछिद्रों की संख्या बढ़ती जाती है, द्वितीयक उच्चिष्ठ की धारियाँ क्षीण होती जाती हैं और मुख्य उच्चिष्ठ की धारियाँ अत्यंत तीक्ष्ण होती जाती हैं ।
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ज्यों-ज्यों रेखाछिद्रों की संख्या बढ़ती जाती है, द्वितीयक उच्चिष्ठ की धारियाँ क्षीण होती जाती हैं और मुख्य उच्चिष्ठ की धारियाँ अत्यंत तीक्ष्ण होती जाती हैं ।
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एक रेखाछिद्र के पैटर्न में जहाँ जहाँ उच्चिष्ठ मिलता है, दो रेखाछिद्र के पैटर्न में उन्हीं स्थानों पर कई धारियाँ बनती हैं, जो पहले के बैंडों की अपेक्षा अधिक पतली और तीक्ष्ण होती हैं।
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एक रेखाछिद्र के पैटर्न में जहाँ जहाँ उच्चिष्ठ मिलता है, दो रेखाछिद्र के पैटर्न में उन्हीं स्थानों पर कई धारियाँ बनती हैं, जो पहले के बैंडों की अपेक्षा अधिक पतली और तीक्ष्ण होती हैं।
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एक रेखाछिद्र के पैटर्न में जहाँ जहाँ उच्चिष्ठ मिलता है, दो रेखाछिद्र के पैटर्न में उन्हीं स्थानों पर कई धारियाँ बनती हैं, जो पहले के बैंडों की अपेक्षा अधिक पतली और तीक्ष्ण होती हैं।
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इन में उन्मत्त उच्चिष्ठ गणपति और नृत्य गणपति, बल गणपति, भक्ति विघ्नेश्वर गणपति, तरुण गणपति, वीर विघ्नेश्वर गणपति, लक्ष्मी गणपति, प्रसन्न गणपति, विघ्नराज गणपति, भुवनेश गणपति, हरिद्र गणपति आदि हैं।
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उनके समीकरणों पर निबंध ने अवकल कलन से सम्बंधित अवधारणाओं का विकास किया, जैस व्युत्क्रम फलन और वक्र के उच्चिष्ठ और निम्निष्ठ (maxima and minima)ताकि उन घन समीकरणों को हल किया जा सके, जिनके धनात्मक हल नहीं हो सकते हैं.