वर्तमान देवगढ़ दुर्ग के दक्षिण पश्चिम दुर्ग के दक्षिण पश्चिम में राजघाटी के किनारे, बारहवीं सदी के उत्कीर्ण अभिलेख से ज्ञात होता है कि वत्सराज ने इस स्थान का नाम कीर्तिगिरि रखा था।
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यहाँ संस्कृत तथा फारसी दोनों भाषाओं में उत्कीर्ण अभिलेख से पता चलता है कि इसका निर्माण माण्डु-सुल्तान गयास शाह खिलजी के शासन-काल में सन् १४८८ (हिजरी ८९४) में शेरखान द्वारा नियुक्त एक अधिकारी ने करवाया था।
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इस पुस्तक के अध्याय 5, 6, तथा 7 के अधिकांश अंश, जिनकी पृष्ठ संख् या लगभग 60 है, श्री बालचन्द जैन द्वारा लिखित ' उत्कीर्ण अभिलेख ' नामक पुस्तक की प्रतिलिपि ही कहे जा सकते हैं।
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यहाँ संस्कृत तथा फारसी दोनों भाषाओं में उत्कीर्ण अभिलेख से पता चलता है कि इसका निर्माण माण्डु-सुल्तान गयास शाह खिलजी के शासन-काल में सन् १४८८ (हिजरी ८९४) में शेरखान द्वारा नियुक्त एक अधिकारी ने करवाया था।
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इस आलेख में मैंने रामगढ की प्राचीन नाट्य-शाला, जोगीमारा सीता बेन्गरा गुफा के मौर्यकालीन ब्राम्ही लिपि में उत्कीर्ण अभिलेख, रंगीन भित्ति चित्रों के अलावा महेशपुर, लक्ष्मणगढ़, देवगढ-सतमहला, डीपाडीह के मंदिरों के भग्नावशेष और अन्य पुरातात्विक संपदाओं की उपेक्षा और दुर्दशा पर प्रकाश डाला था।