यह तो हम हिन्दी चिट्ठाकारों का ही उत्साहातिरेक है कि किसी बंदे को अच्छी हिन्दी में ऑनलाइन जगत में चिट्ठाकारी करते देख खुशी से भर जाते हैं और उसे अपने समूह में बिन बुलाए शामिल कर लेते हैं।
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इसी तरह सामने दिखती जीत अथवा जीत की प्राप्ति पर प्रायः कई खिलाड़ी व कप्तान उत्साहातिरेक में भी अपना संयम खो देते हैं, जबकि धोनी अपनी जीत में भी समान रूप से संयत व शांत दिखते हैं ।
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यह उसी ' शूच्याग्रे न दत्तव्यं' वाले युयुत्सु उत्साहातिरेक का लक्षण था जो हिन्दी के हिमायतियों में पचास और साठ के दशक में ज़बर्दस्त तौर पर तारी था, जो कुछ राज्यों में उर्दू को दूसरी भाषा का दर्जा देने के नाम पर ही अलगाववाद सूँघने लगता था।
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वरिष्ठ जनों का कर्तव्य यह भी होता है कि वे रातोंरात खोजी पत्रकारिता के इंडियन आइडल या सबसे तेज बनने के बचकाने आग्रह से खिंचे चले आए युवा मीडियाकर्मियों को आगाह करें, कि उत्साहातिरेक में खबर बंदर के हाथ का उस्तरा बनकर नाक भी कटवा सकती है।
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वरिष्ठ जनों का कर्तव्य यह भी होता है कि वे रातोंरात खोजी पत्रकारिता के इंडियन आइडल या सबसे तेज बनने के बचकाने आग्रह से खिंचे चले आए युवा मीडियाकर्मियों को आगाह करें, कि उत्साहातिरेक में खबर बंदर के हाथ का उस्तरा बनकर नाक भी कटवा सकती है।
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जातक कथाएँ दक्षिण भारतीय बौद्ध भिक्षुओं के द्वारा सुनी सुनायी बातों के आधार पर लिखी गयी हैं और पउम तरिउ उत्साहातिरेक से भरे उस जैन कवि के द्वारा, जिसका वश चलता तो राम, कृष्ण आदि के समान जगन्नियन्ता परमेश्वर को भी जैनधर्म में दीक्षित करके दम लेता।
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पेट्रोमैक्स जिसे रेणु पंचलैट कहते हैं, और जिसे हमारे यहाँ डिलैट कहा जाता था! याद है जब पहली बार बिजली आई थी तो कैसा उत्साहातिरेक था हमारे गाँव में: ठंढा तार, गरम तार, अर्थिंग, करेन्ट, चालीस वॉट, सौ वॉट, ' ट्रान्सफर्मा ', लैन जैसे कितने अल्फ़ाज़ बजबजा उठे थे.
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आज का पाठक यह पूछ सकता है कि अगर हिन्दी के लिए आंदोलन चलाना साम्प्रदायिक नहीं था तो उर्दू में ऐसी क्या ख़ास बात थी जिसके स्पर्श मात्र से आपकी तरक़्क़ीपसंदगी मशकूक हो जाती थी? यह उसी ‘शूच्याग्रे न दत्तव्यं'वाले युयुत्सु' उत्साहातिरेक का लक्षण था जो हिन्दी के हिमायतियों में पचास और साठ के दशक में ज़बर्दस्त तौर पर तारी था, जो कुछ राज्यों में उर्दू को दूसरी भाषा का दर्जा देने के नाम पर ही अलगाववाद सूँघने लगता था।
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आज का पाठक यह पूछ सकता है कि अगर हिन्दी के लिए आंदोलन चलाना साम्प्रदायिक नहीं था तो उर्दू में ऐसी क्या ख़ास बात थी जिसके स्पर्श मात्र से आपकी तरक़्क़ीपसंदगी मशकूक हो जाती थी? यह उसी ‘शूच्याग्रे न दत्तव्यं‘ वाले युयुत्सु उत्साहातिरेक का लक्षण था जो हिन्दी के हिमायतियों में पचास और साठ के दशक में ज़बर्दस्त तौर पर तारी था, जो कुछ राज्यों में उर्दू को दूसरी भाषा का दर्जा देने के नाम पर ही अलगाववाद सूँघने लगता था।
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आज का पाठक यह पूछ सकता है कि अगर हिन्दी के लिए आंदोलन चलाना साम्प्रदायिक नहीं था तो उर्दू में ऐसी क्या ख़ास बात थी जिसके स्पर्श मात्र से आपकी तरक़्क़ीपसंदगी मशकूक हो जाती थी? यह उसी ‘ शूच्याग्रे न दत्तव्यं ' वाले युयुत्सु ' उत्साहातिरेक का लक्षण था जो हिन्दी के हिमायतियों में पचास और साठ के दशक में ज़बर्दस्त तौर पर तारी था, जो कुछ राज्यों में उर्दू को दूसरी भाषा का दर्जा देने के नाम पर ही अलगाववाद सूँघने लगता था।