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उद्भावन उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
11.लिखित-पठित काव्य की परिस्थिति में सजीव इतर सत्ता की उपस्थिति का यह बोध नहीं रहता ; कवि को एक आभ्यन्तर श्रोता का उद्भावन करना पड़ता है, एक इतर आत्मोपस्थित की सृष्टि करनी पड़ती है।

12.निवारण-इस विषय के जानकारों का कहना है कि सृष्टि-रचना होने के अनंतर जब जब सर्वप्रथम मानव का प्रादुर्भाव हुआ, उसी समय विशिष्ट मानवों के मस्तिष्क में किसी दिव्य आलौकिक शक्ति के द्वारा उस ज्ञान ज्ञान का उद्भावन किया गया.

13.निवारण-इस विषय के जानकारों का कहना है कि सृष्टि-रचना होने के अनंतर जब जब सर्वप्रथम मानव का प्रादुर्भाव हुआ, उसी समय विशिष्ट मानवों के मस्तिष्क में किसी दिव्य आलौकिक शक्ति के द्वारा उस ज्ञान ज्ञान का उद्भावन किया गया.

14.उनमें नाटकीय व्यंग्य है, गतिशीलता है, अप्रत्याशित एवं मौलिक परिस्थितियों के उद्भावन की दक्षता है और अलौकिक, आधिदैविक, अतिक्रमित प्राकृतिक पात्रों-घटनाओं का प्रयोग होने पर भी चरित्रों और परोक्ष चित्रण द्वारा यथार्थता या वास्तविकता का आभास देने में इन नाटकों को सफल कहा जा सकता है।

15.उनमें नाटकीय व्यंग्य है, गतिशीलता है, अप्रत्याशित एवं मौलिक परिस्थितियों के उद्भावन की दक्षता है और अलौकिक, आधिदैविक, अतिक्रमित प्राकृतिक पात्रों-घटनाओं का प्रयोग होने पर भी चरित्रों और परोक्ष चित्रण द्वारा यथार्थता या वास्तविकता का आभास देने में इन नाटकों को सफल कहा जा सकता है।

16.परन्तु उच्चाभिलाषीसंगीताचार्यों द्वारा तत्वान्वेषण करना समयोचित कार्य ही माना जायेगा, आवश्यकता है उन निष्ठ कर्त्तव्यपरायण साधकों की जो इस युग में भी भारत कीप्रचीन परम्परा को अपनाते हुए वैज्ञानिक प्रणाली से इस मनमोहक, क्रियात्मक प्राचीन कला को कलात्मक और भावात्मक रूप में परिणत करने केसहज उपाय का उद्भावन करने में समर्थ हो.

17.उनमें से कतिपय ने इस आशंका का भी उद्भावन किया कि ' जो कर्म का आश्रय हो वह द्रव्य है '-यदि कणाद सूत्र का केवल यही एक घटक द्रव्य का लक्षण माना जाएगा, तो इसमें अव्याप्ति दोष आ जायेगा, क्योंकि आकाश, काल और दिक भी पदार्थ हैं जबकि वे निष्क्रिय हैं, उनमें कर्म होता ही नहीं है।

18.प्रकृतिजगत् के स्वभावेक्तिपथ रूपचित्रांकन, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा अतिशयोक्ति, व्यतिरेक, श्लेष आदि अर्थालंकारों की समर्थयोजना, अनुप्रासयमक, शब्दश्लेष, शब्दचित्रादि चमत्कारों का साधिकार प्रयोग और शब्दकोश के विनियोग प्रयोग की अद्भुत क्षमता, शास्त्रीय पक्षों का मार्मिक, प्रौढ़ और समीचीन नियोजन, कल्पनाओं और भावचित्रों का समुचित निवेशन, प्रथम-समागम-कालीन मुग्धनववधू की मन:स्थिति, लज्जा और उत्कंठा का सजीव अंकन, अलंकरण और चमत्कार की अलंकृत काव्यशैली का अनायास उद्भावन और अपने पदलालित्य आदि के कारण इस काव्य का संस्कृत की पंडितमंडली में आज तक निरंतर अभूतपूर्व समादर होता चला आ रहा है।

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