तब सोचिये गांव की वर्तमान व्यवस्था पर इसका क्या असर होगा, जहां आज भी उधार खाते वाली इकॉनॉमी एक वास्तविकता है।
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जिसका अपना स्वाभिमान परचुन की दुकान के उधार खाते में ज़ब्त हो चुका होगा वो जरूरत पड़ने पर दूसरे से लूटे स्वाभिमान को औने-पौने दाम में बेचकर ही काम चला पाएगा।
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अर्थात, अगर कोई उधार खाते में लिखवाकर सामान ले रहा है तो ज्यादा संभावना है कि वह और किसी दुकान से सामान नहीं खरीदेगा और अपने यहां उसकी ग्राहकी का खाता पक्का रहेगा।
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अर्थात, अगर कोई उधार खाते में लिखवाकर सामान ले रहा है तो ज्यादा संभावना है कि वह और किसी दुकान से सामान नहीं खरीदेगा और अपने यहां उसकी ग्राहकी का खाता पक्का रहेगा।
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जहां भी ऐसे जमाकर्ता है वहाँ बैंक का दायित्व बनता है कि या तो उधारकर्ता या ज़मानत के रूप में राशि को उचित उधार खाते में पहले से ही समायोजित किया जा सकता है।
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अभी तक जिन स्कूलों में ड्रेसें वितरण की भी गयीं हैं उनका रुपया या तो प्रधान व प्रधानाध्यापक ने दिया है या फिर किसी बस्ता व ड्रेस सप्लायर ने उधार खाते में ड्रेसें दी हैं।
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परछाई मात्र ' की प्रतीक्षा में सालों-साल गुजार दिए, कई चाय वालों के पैसे आज तक उधार खाते में दर्ज हैं, आज तक़रीबन 29,000 करोड़ से अधिक के संपत्ति और नकद के मालिक हैं.
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नेता होने के कारण वहां पर हुई सारी गुस्ताखियां, गड़बड़ियां और यहां तक की किराने वाले, होटल वाले, पान-सिगरेट वाले के यहां चलने वाले उधार खाते दिल्ली वाले भाई साहब के नाम दर्ज होते थे।
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मगर मध्यमवर्गीय परिवारों में उधार खाते के बिना काम कम ही चलता है, किसी व्यक्ति से नहीं तो सरकार से ही सही, लेना ही पड़ता है लोन, जल्द से जल्द चुकाने के इरादे से ही!
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लेकिन जो छात्र और युवा नेता अपने मकान मालिकों के किराये के कर्जदार रहते थे और होटलों पर उधार खाते थे, विधायक और मंत्री बनकर दो दो मकानों, कम से कम एक जीप, एक मोटर साइकिल और स्कूटरों के मालिक बन गये.